मृत घोषित की गई किशोरी बगहा में जीवित मिली, मानवाधिकार आयोग ने पुलिस अफसरों पर कसी नकेल

njnhbhg

आनंद पब्लिक, महराजगंज (उप संपादक अरुण वर्मा)

महराजगंज जनपद के घुघली थाना क्षेत्र से जुड़ा एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग को कड़ी कार्रवाई करने पर भी विवश कर दिया है। यह मामला वर्ष 2023 का है, जब एक किशोरी के लापता होने के बाद उसे मृत मान लिया गया और हत्या के झूठे आरोप में उसके पिता और भाई को जेल भेज दिया गया। लेकिन अब, जब वह किशोरी बिहार के बगहा में जीवित पाई गई, तो पूरे मामले की हकीकत और पुलिस की घोर लापरवाही सामने आ गई है।

कैसे हुआ था मामला दर्ज

घटना की शुरुआत तब हुई, जब घुघली क्षेत्र की एक किशोरी काम पर जाने के बाद वापस नहीं लौटी। परेशान पिता संजय ने गांव के तीन लोगों पर अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया। इसी बीच निचलौल क्षेत्र की एक नहर में एक अज्ञात युवती का शव मिला, जिसे पुलिस ने बिना डीएनए जांच के संजय की लापता बेटी प्रीति मान लिया। पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर, संजय और उनके बेटे अम्बरीश उर्फ सूरज को जेल भेज दिया।

जीवित मिली ‘मृत’ किशोरी, खुला पुलिसिया फर्ज़ीवाड़ा

कुछ ही महीनों बाद, वही प्रीति नाम की किशोरी बिहार के बगहा में जीवित पाई गई। इससे न सिर्फ पुलिस की लापरवाही उजागर हुई, बल्कि एक निर्दोष पिता और बेटे को बेवजह जेल में डालने का मामला सामने आया। इस पूरी घटना ने पुलिस तंत्र की जांच प्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए।

मानवाधिकार आयोग ने लिया स्वतः संज्ञान

इस घटना से मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हुए संजय ने जब उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग का रुख किया, तो आयोग ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच कराई। जांच में कई गंभीर लापरवाहियां उजागर हुईं, जिस पर आयोग ने तत्कालीन थानाध्यक्ष नीरज राय और विवेचक वरिष्ठ उप निरीक्षक भगवान बक्श सिंह के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।

डॉक्टर, सीओ और अन्य अफसरों पर भी गिरी गाज

आयोग की जांच में पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक डॉ. आदीदेव पर डीएनए नमूना सुरक्षित न रखने की लापरवाही साबित हुई, जिसके चलते उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की गई है। वहीं, तत्कालीन क्षेत्राधिकारी सदर अजय सिंह चौहान को भी अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह माना गया है, और आयोग ने शासन को उनके विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश दिया है।

मुआवजे और वसूली का आदेश

इस मामले में आयोग ने पीड़ित पिता संजय और पुत्र अम्बरीश को एक-एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश की है। साथ ही यह स्पष्ट किया गया है कि यह राशि लापरवाह अधिकारियों से वसूल की जाए। इस पूरे प्रकरण ने साबित किया है कि यदि जांच और प्रक्रियाएं सही तरीके से न हों, तो निर्दोष लोग भारी कीमत चुका सकते हैं।

यह घटना न केवल महराजगंज पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा करती है, बल्कि यह उदाहरण भी पेश करती है कि पुलिसिया लापरवाही किस हद तक किसी साधारण नागरिक की ज़िंदगी को बर्बाद कर सकती है। मानवाधिकार आयोग की सख्ती से यह भी संदेश गया है कि अब ऐसी लापरवाहियों को बख्शा नहीं जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हो सकता है आप चूक गए हों