देवभूमि में रिश्तों का खौफनाक चेहरा: बुजुर्गों पर हो रहे अत्याचार से शर्मसार इंसानियत

उत्तराखंड में बुजुर्ग माता-पिता के साथ बढ़ते अत्याचार की घटनाएं गंभीर चिंता का विषय बन चुकी हैं। कई बुजुर्ग अपने बच्चों और बहू-बेटों द्वारा प्रताड़ित किए जाने की शिकायतें लेकर डीएम कार्यालय और शिकायत प्रकोष्ठ में पहुंच रहे हैं। हर सप्ताह 15 से 20 मामले ऐसे सामने आ रहे हैं। जनसुनवाई में भी हर सोमवार कोई न कोई बुजुर्ग अपनी समस्या लेकर डीएम के पास पहुंचता है। सिटी मजिस्ट्रेट कोर्ट में भी कई मामलों की सुनवाई चल रही है, जिसमें बुजुर्ग माता-पिता ने अपने बच्चों के खिलाफ शिकायत की है।नवंबर महीने में जनसुनवाई के दौरान एक बुजुर्ग महिला ने डीएम सविन बंसल से शिकायत की कि उनके बेटे उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी एक घर बनाने में गुजार दी, लेकिन अब उनके बेटे उस घर में उन्हें एक कोना तक देने को तैयार नहीं हैं और मारपीट भी करते हैं। इस पर डीएम ने पुलिस अधीक्षक क्राइम को मामले की जानकारी दी और कार्रवाई के निर्देश दिए।
एक अन्य मामले में एक बुजुर्ग महिला ने डीएम से कहा कि उनके बेटे उन्हें घर में रखने को तैयार नहीं हैं। बहू और बेटों ने मिलकर उन्हें प्रताड़ित कर रखा है। वह सही से खाना भी नहीं देते और इलाज के लिए पैसे नहीं देते। डीएम ने उप जिलाधिकारी को भरण पोषण अधिनियम के तहत महिला की मदद करने और बेटों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए।सीनियर सिटिजन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अतुल जोशी ने कहा कि बुजुर्गों पर बढ़ते अत्याचार के मामले बेहद चिंताजनक हैं। उनके संगठन के पास भी ऐसे मामले रोजाना आते हैं, लेकिन अक्सर बुजुर्ग लोकलाज के कारण अपनी परेशानियों को सार्वजनिक नहीं करते और प्रताड़ना सहते रहते हैं। उनका संगठन पीड़ितों की मदद और आवाज उठाने का प्रयास करता है।
भारत सरकार ने 2007 में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम पारित किया, जिससे बुजुर्ग अपनी सुरक्षा और सहायता के लिए खुद कार्रवाई कर सकते हैं। यह कानून 60 साल या उससे ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों के लिए है। वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल शर्मा के अनुसार, इस कानून में बुजुर्गों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए खास प्रावधान किए गए हैं।इस कानून के तहत, यदि बच्चे या रिश्तेदार बुजुर्गों का ख्याल नहीं रखते, तो वे एसडीएम कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं। कोर्ट 90 दिनों के भीतर फैसला लेता है और अंतरिम गुजारा भत्ता 10,000 रुपये तक तय कर सकता है। आदेश न मानने पर आरोपी को जेल हो सकती है और संपत्ति छीनने का भी प्रावधान है।
राज्य सरकार भी बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। हर जिले में ओल्ड एज होम बनाने और सरकारी अस्पतालों में बेड आरक्षित करने की जिम्मेदारी सरकार की है। अगर माता-पिता ने अपनी संपत्ति बच्चों को दी है और बच्चे उनकी सेवा नहीं कर रहे, तो वह संपत्ति फिर से माता-पिता के नाम पर आ सकती है।सुरक्षा के लिए, घर में कर्मचारी की नियुक्ति से पहले पुलिस वेरीफिकेशन करवाएं, अतिरिक्त चाबियां गुप्त जगह रखें, सीसीटीवी कैमरे लगवाएं, और बाहर जाने से पहले पड़ोसियों और चौकीदार को सूचना दें।