हिमाचल: लाल चावल की कीमत 800 रुपये प्रति किलो, सेहत के लिए फायदेमंद

लाल चावल की फसल करीब 10 हजार साल पुरानी मानी जाती है और यह पोषाहार और औषधीय गुणों से भरी हुई होती है। परंपरागत चिकित्सा में इसका उपयोग ब्लड प्रेशर, कब्ज, महिला रोग और ल्यूकोरिया जैसे समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। हाल के समय में, हिमाचल प्रदेश में यह फसल विलुप्त हो रही थी, लेकिन अब इसकी खेती फिर से बढ़ने लगी है।शिमला जिले के रामपुर में हर साल लगने वाले लवी मेले में विभिन्न किस्मों के चावल बिक्री के लिए रखे जाते हैं, जिनमें खासकर छोहारटू और पैजा चावल बहुत आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इस मेले में कई सालों से चावल का कारोबार कर रहे व्यापारी अमरनाथ बताते हैं कि पैजा चावल एक जैविक और शुगर फ्री किस्म है, जिसे डायबिटीज के मरीज भी आराम से खा सकते हैं। इसका सूप पेट की समस्याओं जैसे दस्त के लिए भी फायदेमंद होता है। उन्होंने बताया कि इस खास किस्म के चावल का पेटेंट भी कराया गया है और यह राष्ट्रपति से सम्मानित भी हो चुका है। पैजा चावल की कीमत प्रति किलो 800 रुपये है।
लाल चावल की फसल उन क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां पानी की बहुतायत हो, जैसे चिड़गांव, रोहड़ू, रामपुर, कुल्लू घाटी, सिरमौर और कांगड़ा के ऊपरी इलाके। राज्य में लोकप्रिय किस्मों में रोहड़ू का छोहारटू, चंबा का सुकारा तियान, कांगड़ा का लाल झिन्नी, और कुल्लू का जतू और मटाली शामिल हैं।यह फसल मध्य हिमालय के गर्म और आर्द्र वातावरण में मोटी मिट्टी में उगाई जाती है। वर्तमान में, शिमला जिले के सुरु कूट, कुथरु, गानवी, जांगल, नाडाला, कलोटी और देवीधार जैसे क्षेत्रों में 213 हेक्टेयर में लाल चावल की खेती हो रही है। चंबा जिले में, यह फसल 107 हेक्टेयर में मानी, पुखरी, साहो, कीड़ी, लाग, सलूणी और तीसा क्षेत्रों में उगाई जाती है