योगी सरकार के फैसले पर अखिलेश का तंज: DGP की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव पर बढ़ा विवाद

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने डीजीपी पद पर स्थायी तैनाती के लिए नई नियमावली बनाई है, जिसे सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में मंजूरी मिल गई है। इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद राज्य सरकार सीधे अपने स्तर पर डीजीपी की नियुक्ति कर सकेगी। पहले, राज्य सरकार डीजीपी के संभावित नामों का पैनल संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को भेजती थी, जो तीन नामों का चयन करके वापस भेजता था। फिर, राज्य सरकार उन्हीं में से किसी एक को डीजीपी के रूप में नियुक्त करती थी। योगी सरकार का यह कदम इस प्रक्रिया को सरल बनाने की ओर है, ताकि राज्य सरकार बिना देरी के आवश्यकतानुसार डीजीपी की नियुक्ति कर सके।

 

इस फैसले के बाद राजनीति और पुलिस महकमे में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस निर्णय पर टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया कि क्या यह कदम दिल्ली (केंद्र) की शक्तियों को लखनऊ (राज्य सरकार) के अधीन लाने की कोशिश है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि इस फैसले से एक बड़े अधिकारी के लिए स्थायी पद और सेवा विस्तार की तैयारी की जा रही है। माना जा रहा है कि इस नई नियमावली का उद्देश्य वर्तमान कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार को स्थायी डीजीपी बनाने के लिए किया गया है, जिन्हें योगी सरकार का संकटमोचक माना जाता है। प्रशांत कुमार का कार्यकाल मई 2025 तक है, और चर्चाएं हैं कि उन्हें सेवा विस्तार भी मिल सकता है।

 

नई नियमावली के तहत, पे मैट्रिक्स के 16 लेवल वाले सभी अधिकारी डीजीपी बनने के लिए योग्य माने जाएंगे, बशर्ते उनकी सेवानिवृत्ति में कम से कम छह महीने का समय शेष हो। इस संशोधन से राज्य सरकार को यूपीएससी की प्रक्रिया का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह नियमावली 2006 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुरूप है, जिसमें राज्य सरकारों से पुलिस सुधारों के तहत डीजीपी की नियुक्ति के लिए पारदर्शी प्रक्रिया बनाने की बात कही गई थी।

 

11 मई 2022 को मुकुल गोयल के हटने के बाद से उत्तर प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति नहीं हुई है। पिछले कुछ वर्षों में, कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर डॉक्टर डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा, विजय कुमार और वर्तमान में प्रशांत कुमार को नियुक्त किया गया है। मुकुल गोयल के हटने के बाद, यूपी सरकार ने यूपीएससी को पैनल नहीं भेजा था और कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाया गया।

 

इस नई नियमावली से यूपी सरकार को डीजीपी की नियुक्ति में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी। यह निर्णय प्रदेश में पुलिस प्रशासन की स्थिरता और नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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