उत्तराखंड हाईकोर्ट: UCC महिलाओं और लिव-इन रिश्तों में जन्मे बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है

How to set healthy relationship boundaries (and stick to them) — Calm Blog

 

देहरादून: उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर बहस तेज हो गई है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यह कानून महिलाओं और ऐसे रिश्तों से जन्मे बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है।

 

याचिकाओं पर सुनवाई

 

जस्टिस मनोज कुमार तिवारी और जस्टिस आशीष नैथानी की खंडपीठ ने UCC की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ताओं— जिनमें एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक दंपति शामिल थे— का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि यह कानून निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और राज्य को अत्यधिक निगरानी की शक्ति देता है।

 

राज्य सरकार का पक्ष

 

हाईकोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि UCC व्यापक सार्वजनिक परामर्श के बाद लागू किया गया और इसका हर प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

 

क्या कहता है नया कानून?

 

उत्तराखंड सरकार ने इस साल जनवरी में UCC लागू किया, जिसके तहत लिव-इन जोड़ों को 30 दिनों के भीतर अपना रिश्ता पंजीकृत कराना अनिवार्य है। यह नियम न केवल पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

 

अगली सुनवाई कब?

 

UCC को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर एक अप्रैल को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। इससे पहले, कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय दे चुका है।

 

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