अद्वितीय स्थापत्य का चमत्कार: 250 वर्ष पुराने कल्कि विष्णु मंदिर का इतिहास

संभल का प्राचीन कल्कि विष्णु मंदिर, जिसे 250 वर्षों से मध्य प्रदेश के अहिल्याबाई होलकर ट्रस्ट द्वारा संरक्षित किया जा रहा है, एक अद्वितीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर है। इस मंदिर को मां लक्ष्मी का निवास माना जाता है। मंदिर की देखभाल पुजारी पं. महेंद्र शर्मा के परिवार द्वारा पीढ़ियों से की जा रही है।
मंदिर का इतिहास और संरचना
मंदिर का जीर्णोद्धार करीब 250 साल पहले महारानी अहिल्याबाई होलकर के ट्रस्ट द्वारा कराया गया था। पुजारी महेंद्र शर्मा के बेटे अनुज शर्मा ने बताया कि उनके पूर्वज महारानी के राज ज्योतिषी थे और उन्हें मंदिर की देखभाल का जिम्मा सौंपा गया था।
यह मंदिर अष्ट कोणीय आकार में बना हुआ है, जिसकी दीवारों और गुंबद पर अनूठी कलात्मकता देखने को मिलती है। गुंबद का स्वरूप सुदर्शन चक्र की तरह है, जो वास्तुकला की दृष्टि से इसे एक अनमोल कृति बनाता है।
एएसआई से संरक्षण की मांग
हालांकि यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में नहीं है। पुजारी महेंद्र शर्मा ने बताया कि 150 वर्ष से अधिक पुरानी इमारतों का संरक्षण एएसआई द्वारा किया जाता है, लेकिन इस मंदिर को अभी तक यह लाभ नहीं मिल पाया है।
अन्य संरक्षित धरोहरें
संभल में जामा मस्जिद और फिरोजपुर किला जैसी ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण एएसआई द्वारा किया जाता है। समय-समय पर मेरठ और आगरा से टीम यहां सर्वेक्षण के लिए आती रहती है। एक बार सर्वेक्षण के लिए एएसआई की टीम ने इस मंदिर का भी दौरा किया था और उसकी दीवारों व गुंबद की रचनात्मकता को सराहा था।
धार्मिक महत्व
पुजारी महेंद्र शर्मा का कहना है कि पुराणों के अनुसार, भगवान कल्कि का अवतरण कलियुग में संभल में होगा। यह स्थान “कल्कि नगरी” के रूप में प्रसिद्ध है। उनका मानना है कि भगवान का अवतरण पाप और पापियों के नाश के लिए होगा।
संरक्षण की आवश्यकता
इस प्राचीन मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को देखते हुए इसके संरक्षण की आवश्यकता है। मंदिर की संरचनात्मक कलात्मकता और धार्मिक महत्व इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिलाने योग्य बनाते हैं। पुजारी महेंद्र शर्मा और स्थानीय लोग लगातार एएसआई से इस दिशा में कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
इस मंदिर का संरक्षण न केवल इसकी वास्तुकला को बचाने में मदद करेगा, बल्कि इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य करेगा।