शिक्षा विभाग की वाहवाही, लेकिन प्रधानाचार्य की जेब पर बोझ; बच्चों के लिए खुद खरीद रहे पोषण सामग्री

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परिषदीय स्कूलों में छात्रों को कुपोषण से बचाने के लिए पीएम पोषण योजना के तहत सप्लीमेंट देने का फरमान जारी किया गया, लेकिन इसे लेकर कई समस्याएं सामने आ रही हैं। योजना के तहत हर बृहस्पतिवार को छात्रों को चिक्की, गजक, भुना चना, और रामदाना के लड्डू जैसी खुराक दी जानी है। हालांकि, शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को बजट की कमी के कारण भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विभाग ने 10 लाख 80 हजार रुपये की पहली किस्त तो जारी कर दी, लेकिन यह पैसा अभी तक प्रधानाचार्यों के एमडीएम खातों में नहीं पहुंचा।

 

बजट की अनुपलब्धता और प्रधानाचार्यों पर दबाव:

बजट उपलब्ध नहीं होने के बावजूद प्रधानाचार्यों पर सप्लीमेंट बांटने का दबाव बनाया जा रहा है। कुछ प्रधानाचार्यों ने बताया कि अपने निजी खर्चे से हर सप्ताह छात्रों के लिए सप्लीमेंट खरीदने में 700 से 900 रुपये तक का खर्च आ रहा है। एक महीने में यह राशि 3500 रुपये तक पहुंच जाती है। शिक्षकों का कहना है कि बजट आने तक यह जिम्मेदारी एनजीओ को सौंपी जानी चाहिए, जो मिड डे मील का प्रबंधन करते हैं।

 

सप्लीमेंट वितरण का असर:

शिक्षकों का मानना है कि सप्लीमेंट बांटने का काम उनके ऊपर डालने से शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ, प्रवीण शर्मा, ने कहा कि सप्लीमेंट वितरण का काम शिक्षकों से करवाना गलत है और इससे शिक्षण कार्य बाधित होता है। जिला मंत्री गजन भाटी ने भी इस बात पर जोर दिया कि शिक्षकों को बार-बार कार्रवाई का डर दिखाकर दबाव में रखा जा रहा है।

 

प्रशासन का जवाब:

बेसिक शिक्षा अधिकारी राहुल पंवार ने बताया कि सप्लीमेंट के लिए आवंटित राशि सभी 511 स्कूलों के प्रधानाचार्यों के खातों में भेज दी गई है। उन्होंने आश्वासन दिया कि देर रात तक यह पैसा खातों में पहुंच जाएगा। हालांकि, शिक्षकों का सवाल है कि जब तक राशि उनके खातों में नहीं आती, तब तक वे सप्लीमेंट कैसे बांटें।

 

इस स्थिति ने सप्लीमेंट योजना के क्रियान्वयन में खामियों को उजागर किया है। विभाग को चाहिए कि शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव डालने के बजाय बजट और प्रबंधन की प्रक्रिया को सुचारू बनाए, ताकि योजना का उद्देश्य पूरा हो सके और छात्रों को लाभ मिल सके।

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