UP NEWS: पारम्परिक तरीके से मा की बिदाई; वाराणसी के चेतसिंह घाट पर सिंदूर खेला का भव्य आयोजन

वाराणसी के चेतसिंह घाट पर रविवार की सुबह धुनुची सहित सिंदूर खेला का भव्य आयोजन हुआ। इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक तरीके से एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर त्योहार की बधाई दी।



वहीं, भेलूपुर स्थित जिम स्पोर्टिग क्लब में बंग समाज की महिलाओं ने भी सिंदूर खेला किया। मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करके विदाई दी गई। आश्चे बोछोर आबर होबे… अर्थात ससुराल को विदाई देते हुए दोबारा जल्दी आने का उद्घोष बंगाली समुदाय के पंडालों में गूंज उठा। रविवार को भेलूपुर से लेकर दशाश्वमेध तक बंगाली समुदाय ने मां जगदंबा को भीगी पलकों के साथ विदाई दी। बैंड बाजे की धुन पर थिरकती हुए महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म भी निभाई और जब विदाई का मौका आया तो आंखें भी छलक उठीं। देश की धार्मिक राजधानी काशी नगरी में यह आयोजन विशेष महत्व रखता है। बंग समाज की सुहागिन महिलाओं ने पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाया और मिठाई खिलाई।

इसके बाद सभी सुहागिनों ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। पूरा पंडाल सिंदूर की रंगत से रंग गया। इसके बाद ढोल-नगाड़ों की नृत्य पर धुनुची नृत्य का आयोजन हुआ। इसमें भी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

सनातन परंपरा की विशेषता है कि कोई भी शुभ कार्य समाप्त नहीं होता। इसे पुनः होने की उम्मीद होती है। दुर्गा पूजा, छठ, गणपति उत्सव एक बार संपन्न होते ही अगले वर्ष के लिए मन तैयार हो जाता है।

मान्यता है कि मां दुर्गा नवरात्र के दौरान मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद फिर वापस ससुराल जाती हैं। मां के रुकने के उपलक्ष्य में दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है।

परंपरा के अनुसार, मां दुर्गा को बेटी जैसा प्यार और दुलार दिया जाता है। बंगाली समाज की बेटी को विदाई के लिए तैयार किया जाता है। सुहागिन महिलाएं मां को मिठाई, दही चखाती हैं। चूड़ा पहनाती हैं और सिंदूर लगाती हैं। बंगाली समाज के पंडालों में यह आयोजन पूरे विधि-विधान से होता है।

मान्यता है कि वर्ष में तीन दिन देवी दुर्गा अपने ससुराल से मायके आती हैं। ऐसे में मायके से विदाई के वक्त उनके साथ बेटी जैसा व्यवहार होता है। बेटी के पहली बार ससुराल जाने पर पूरी रस्म अदायगी की जाती है। सिंदूर खेला के आयोजन के बाद ही मां को विदाई दी जाती है।

 

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