दिल्ली हिंसा: दिल्ली पुलिस का दावा- महिलाओं को सुनियोजित तरीके से पथराव के लिए किया गया इस्तेमाल, खालिद की थी योजना

दिल्ली हिंसा मामले में बृहस्पतिवार को उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत पर दिल्ली पुलिस ने अपना पक्ष रखा। दिल्ली हिंसा की बड़ी साजिश के मामले में जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए एसपीपी अमित प्रसाद ने न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर के सामने दस्तावेज और बयान प्रस्तुत किए। प्रसाद ने कहा कि जब हिंसा होती है तो उस पर तत्काल प्रतिक्रिया होती है।
उमर खालिद को जहांगीरपुरी से जंतर-मंतर तक लोगों की जरूरत थी, जिन्हें फिर शाहीन बाग ले जाया गया। उन्होंने कहा कि फिर उन्हें जाफराबाद मेट्रो स्टेशन ले जाया गया और महिलाओं का इस्तेमाल पथराव के लिए किया गया।
विशेष लोक अभियोजन ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों आसिफ इकबाल तन्हा, देवनागना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने वाले समन्वय पीठ द्वारा पारित आदेश को मिसाल के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए।
उसी के आधार पर समानता अन्य आरोपी व्यक्तियों पर लागू नहीं होगी। प्रसाद ने कहा कि आसिफ इकबाल तन्हा और मीरान हैदर दंगों के पहले और दूसरे चरण में शामिल थे। उन्होंने कहा कि दोनों चरणों में एक ही पैटर्न था- सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना और पुलिसकर्मियों पर हमला करना।
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उमर खालिद के पास 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी से बाहर रहने की सुनियोजित योजना थी, ताकि वह फंस न जाए। पुलिस के पास यह दिखाने के लिए सबूत है कि उसने (उमर खालिद) खुद को बिहार में दिखाया जहां वह भाषण देने गया था।
पुलिस ने प्रत्येक कार्रवाई सुनियोजित थी, दिखाने के लिए दिल्ली अग्निशमन सेवाओं द्वारा प्राप्त आग की कॉल और डीएमआरसी के साथ-साथ अन्य अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट का हवाला दिया। न्यायालय के लिए हिंसा के आकार देखना आवश्यक है।
प्रसाद ने कहा कि प्रत्येक विरोध स्थल की निगरानी और संचालन जामिया के छात्रों द्वारा किया गया था। उन्होंने कहा कि उमर खालिद के निर्देशों के तहत व्हाट्सएप ग्रुप- जेएसीटी और जेसीसी बनाए गए थे। प्रसाद ने जामिया के छात्रों (स्टूडेंट आफ जामिया) द्वारा प्रसारित विभिन्न पर्चों और पोस्टों का भी हवाला दिया।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि सीएए, एनआरसी को मुसलमानों से संबंधित माना जाता है। ट्रिपल तलाक़ मुसलमाकों के लिए हो सकते हैं, बाबरी मस्जिद मुसलमान हो सकते हैं लेकिन आप कैसे कह सकते हैं कि कश्मीर एक मुस्लिम मुद्दा है।
यही भारत का एकीकरण है। जब मीरान हैदर, शरजील इमाम, खालिद सैफी, उमर खालिद द्वारा दिए गए भाषणों को देखते हैं तो एक समान पैटर्न दिखाई देता है। उनके सभी भाषण एक जैसी तर्ज पर हैं।