बसपा का सियासी दांव: दलित-मुस्लिम गठजोड़ से सपा की राह में रोड़े

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उत्तर प्रदेश की कुंदरकी विधानसभा सीट पर बसपा ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को मतदान होगा, और इस बार बसपा ने संभल के रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में सपा का इस सीट पर दबदबा रहा है, जहां सपा ने चार बार जीत दर्ज की है, जबकि बसपा ने दो बार, आखिरी बार 2007 में, सफलता प्राप्त की थी।

बसपा की इस नई रणनीति के तहत, वे फिर से दलित और मुस्लिम समुदायों के बीच सहयोग का प्रयास कर रही हैं। इस गठजोड़ से न केवल कुंदरकी सीट पर बसपा को मजबूती मिलेगी, बल्कि इससे सपा का चुनावी खेल भी बिगड़ सकता है। कुंदरकी सीट पर सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

बसपा ने इस सीट पर पहले भी 1996 और 2007 में सपा के वर्चस्व को चुनौती दी थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी संभल से डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को उतारकर बसपा ने जीत हासिल की थी। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार सौलत अली को 31,400 वोट मिले थे, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में हाजी रिजवान को 42,000 से अधिक मत प्राप्त हुए थे।

अब छिद्दा के सहारे बसपा सपा के पारंपरिक वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। इस चुनावी दौड़ में सभी की नजरें अब सपा और भाजपा के उम्मीदवारों की घोषणा पर टिकी हैं। कुंदरकी में होने वाले इस उपचुनाव का परिणाम न केवल स्थानीय राजनीति पर, बल्कि राज्य की राजनीति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। बसपा का यह नया कदम सपा और भाजपा दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

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