परंपरा और प्रथा: 400 वर्षों से निभाई जा रही गोवंशों की दावत, किसानों का अनोखा विश्वास

मध्य प्रदेश के सागर जिले के रजौली गांव में एक अद्भुत और अनोखी परंपरा पिछले 400 वर्षों से निभाई जा रही है। यह परंपरा हर साल पौष माह की सोमवती अमावस्या के दिन मनाई जाती है। इस दिन किसान अपनी फसलों को गोवंशों के लिए खुला छोड़ देते हैं, और गांव के सभी लोग अपनी गायों और अन्य गोवंशों को खेतों में चरने के लिए ले जाते हैं। यह परंपरा न केवल ग्रामीणों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि उनके पशुओं के प्रति गहरी संवेदनशीलता और प्रेम को भी दर्शाती है।
इस परंपरा की शुरुआत गांव के बुजुर्ग दादू मर्दन सिंह लोधी ने करीब 400 साल पहले की थी। ग्रामीणों का मानना है कि जब गायें खेतों में चरती हैं और अपने पैर फसलों पर रखती हैं, तो इससे फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इस मान्यता के साथ हर साल यह परंपरा खुशी और उत्साह के साथ निभाई जाती है। इस दिन आसपास के गांवों से भी लोग इस अनोखे नजारे को देखने के लिए रजौली आते हैं। यह दिन ग्रामीणों के लिए एक उत्सव की तरह होता है, जिसमें वे अपनी परंपरा और पशुओं के साथ जुड़े संबंधों को सशक्त करते हैं।
रजौली गांव की यह परंपरा पशु और किसान के आपसी संबंधों का एक सुंदर उदाहरण है। यह परंपरा यह संदेश देती है कि पशु केवल किसान के सहायक नहीं हैं, बल्कि उनके परिवार का हिस्सा हैं। इसे निभाने से न केवल ग्रामीणों को खुशी मिलती है, बल्कि यह समाज को पशुओं के प्रति सहिष्णुता और जिम्मेदारी का भी पाठ पढ़ाती है।
आधुनिक समाज के लिए यह परंपरा एक प्रेरणा है, जो पर्यावरण और पशु संरक्षण के महत्व को रेखांकित करती है। रजौली के ग्रामीण इस परंपरा के जरिए यह संदेश देते हैं कि परंपराएं केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं होतीं, बल्कि उनमें गहरी सामाजिक और नैतिक भावनाएं भी जुड़ी होती हैं। यह परंपरा न केवल फसलों की समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य का भी एक बेहतरीन उदाहरण है।