धौलाधार पर्वत श्रृंखला पर मां आशापुरी का पावन मंदिर: पांडवों से जुड़ा इतिहास और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर के साथ नागवन के सबसे ऊंचे धौलाधार श्रृंखला के शिखर पर, पंचरुखी के पास चंगर की वादियों में स्थित मां आशापुरी के मंदिर का एक पवित्र और ऐतिहासिक महत्व है। यहां हिंदू संस्कृति और परंपरा की झलक देखने को मिलती है, जो रामायण और महाभारत काल तक से जुड़ी कहानियों को जीवंत करती है। इस मंदिर में मां आशापुरी साक्षात विराजमान हैं और यहां के लोग मानते हैं कि जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन के लिए आते हैं, मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
पांडवों से जुड़ा है मंदिर का इतिहास:
कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आए थे। 16वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण कटोच वंशज के सुप्रसिद्ध राजा मान सिंह ने करवाया था। भक्तों को यहां आकर स्वर्ग जैसे आनंद का अनुभव होता है।
मंदिर का विशेष महत्व:
आशापूरी मंदिर अपनी मंदिर निर्माण की विशेष कला के लिए भी चर्चाओं में रहता है। इसे पुरातत्व विभाग की देख-रेख में रखा गया है। मंदिर के अंदर मां तीन पिंडियों के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है और यहां के 108 पंडित प्रतिदिन बदलते हैं और विधिविधान से पूजा अर्चना करते हैं।
रहस्यमयी गुफा:
मंदिर से कुछ दूरी पर एक गुफा में बाबा भेड़ू नाथ के दर्शन भी होते हैं। यहां लोग अपने पशुओं की रक्षा के लिए बाबा से मन्नतें मांगते हैं। मंदिर के आस-पास हरी-भरी पहाड़ियां और छोटी नदियां मंदिर की सुंदरता को बढ़ाती हैं और यहां आकर स्वर्ग जैसा अनुभव होता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें:
पहले मंदिर के पास कम लोग आते थे, लेकिन अब मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ने से लोग यहां बसने लगे हैं। मंदिर जाने के लिए आप अपने निजी वाहन या टैक्सी से जा सकते हैं। पैदल रास्ते के लिए सीढ़ियों से होकर जाना होता है। माना जाता है कि अप्रैल से अक्टूबर का समय यहां आने के लिए सही रहता है। ठंड के दिनों में यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है।