UP NEWS: ट्रायल कोर्ट में तारीख पे तारीख बन चुकी है बीमारी; न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की, लंबी तारीखें निष्पक्ष सुनवाई के लिए अभिशाप

इस तल्ख टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की अदालत ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी अनिल कुमार की जमानत नामंजूर कर दी।



मामला कानपुर देहात के शिवली थानाक्षेत्र का है। आरोपी के खिलाफ वर्ष 2020 में घर में घुसकर नाबालिग से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। 13 मई 2020 को आरोपी की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद विवेचना कर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिरह-गवाही की लेटलतीफी को लेकर ट्रायल कोर्ट की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पणी की है। कहा कि ट्रायल कोर्ट में तारीख पे तारीख की आदत बीमारी बन चुकी है, कब तक कहेंगे…“जागो! उठो!” लेकिन अदालतें जाग नहीं रहीं। तमाम दिशा-निर्देशों के बावजूद वकील तारीख पे तारीख मांगते है और अदालतें दे देती हैं। यह भी नहीं सोचती कि लंबी तारीखें निष्पक्ष सुनवाई के लिए अभिशाप है। इस तल्ख टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की अदालत ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी अनिल कुमार की जमानत नामंजूर कर दी। मामला कानपुर देहात के शिवली थानाक्षेत्र का है। आरोपी के खिलाफ वर्ष 2020 में घर में घुसकर नाबालिग से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। 13 मई 2020 को आरोपी की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद विवेचना कर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।

ट्रायल कोर्ट में शुरू हुए ट्रायल के दौरान पीड़िता की गवाही (मुख्य परीक्षा) 18 अप्रैल 2024 को हुई। जिरह (प्रति परीक्षा) 2 महीने 9 दिन बाद यानी 27 जून 2024 को हो सकी। इस बीच आरोपी के वकील की अर्जी पर जिरह टलती रही। गवाही के दौरान पीड़िता ने अभियोजन की कहानी का समर्थन किया था, जबकि जिरह के दौरान वह मुकर गई। इसी आधार पर आरोपी ने जमानत के लिए दूसरी बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इससे पहले आरोपी की पहली जमानत अर्जी खारिज हो चुकी थी।

आरोपी के वकील ने दलील दी कि पीड़िता और वादी ने ट्रायल कोर्ट में अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है। आरोपी जेल में चार साल से अधिक समय बीत चुका है। वह जमानत का हकदार है। जबकि, अभियोजन की दलील थी कि पीड़िता की मुख्य परीक्षा और प्रति परीक्षा के बीच काफी समय का अंतर रहा। आरोपी के वकील के अनुरोध पर जिरह स्थगित की गई थी।

इस दौरान गवाहों को प्रभावित किया गया। इसी के बाद पीड़िता बयान से मुकरी है। यदि गवाही के तुरंत बाद जिरह पूरी होती तो गवाह न पलटते। इसलिए आरोपी जमानत का हकदार नहीं है। वह रिहाई के बाद बाकी गवाहों को भी प्रभावित करेगा। कोर्ट ने इस आदेश की प्रति देश के सभी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों को भेजने का निर्देश दिया है। जिसे वह अपने अधीनस्थ ट्रायल कोर्ट को भी भेजें और ट्रायल कोर्ट की लेटलतीफी की कार्यशैली में बदलाव आए।

 

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