संघ प्रमुख मोहन भागवत: हिंदू धर्म विश्व धर्म, स्वीकृति और सद्भावना की नींव पर आधारित

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अलवर में 2842 स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में परिवार के संस्कारों पर खतरा मंडरा रहा है, खासकर मीडिया के दुरुपयोग से नई पीढ़ी अपने संस्कार तेजी से भूल रही है।

डॉ. भागवत ने ‘हिंदू’ की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक विश्वव्यापी मान्यता है जो सबके कल्याण की कामना करती है। उन्होंने कहा कि हिंदू सबसे उदार और परोपकारी मानव होता है जो सब कुछ स्वीकार करता है और सभी के प्रति सद्भावना रखता है। साथ ही उन्होंने स्वयंसेवकों से छुआछूत और जातिगत भेदभाव मिटाने की अपील की और सामाजिक समरसता से बदलाव लाने का आह्वान किया।

इंदिरा गांधी खेल मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक गुणों का विकास आवश्यक है। उन्होंने स्वयंसेवकों को पाँच प्रमुख विषयों – सामाजिक समरसता, पर्यावरण, कुटुंब प्रबोधन, स्व का भाव और नागरिक अनुशासन को अपने जीवन में उतारने की अपील की। उनके अनुसार, जब स्वयंसेवक इन मूल्यों को अपने जीवन में उतारेंगे, तो समाज भी इनका अनुसरण करेगा।

भागवत ने संघ के 100 वर्षों की यात्रा पर बात करते हुए कहा कि एक समय था जब संघ को कोई जानता या मानता नहीं था, लेकिन आज विरोधी भी संघ की महत्ता को मन ही मन स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म और संस्कृति का संरक्षण राष्ट्र की उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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