J&K NEWS: जमात ए इस्लामी के नेता 37 वर्ष बाद कश्मीर में लड़ रहे चुनाव; कोई चुनाव चिन्ह नही, क्या बोले हथियार और किताब के बारे में

गैरकानूनी संगठन जमात ए इस्लामी के नेता 37 वर्ष बाद कश्मीर में चुनाव लड़ रहे हैं। जमात का चुनाव चिह्न नहीं है इसलिए सभी बतौर निर्दलीय मैदान में हैं।



इन नेताओं में सायार अहमद रेशी भी हैं, जो कुलगाम से प्रत्याशी हैं। रेशी का दावा है कि जमात का हिजबुल व हिथ्ायारों से कोई संबंध्ा नहीं है। चुनाव में केंद्र उनकी मदद नहीं कर रहा। कहते हैं, अगर ऐसा होता तो जमात पर पाबंदी क्यों रहती। चार दशक बाद गृह मंत्रालय से प्रतिबंधित गैर कानूनी संगठन जमात ए इस्लामी के नेता कश्मीर में चुनाव लड़ रहे हैं। 1987 में जब आखिरी बार जमात ने चुनाव लड़ा तो कांग्रेस उसके साथ थी। उन चुनावों में गड़बड़ी का आरोप लगा और कहा- माना जाने लगा कि उसके बाद ही घाटी में आतंकवाद की शुरुआत हुई। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कश्मीर की अन्य पार्टियों का आरोप है कि दिल्ली की सरकार जमात और हुर्रियत की मदद कर रही है। इस बार दक्षिण कश्मीर के कुलगाम से निर्दलीय उम्मीदवार हैं जमात ए इस्लामी के सायार अहमद रेशी। वह पॉलिटिकल साइंस में एमफिल हैं। चुनावी रैली में साथ आए युवा उन्हें सायार सर बुलाते हैं। उनके प्रचार में गरीबों की बातें हैं और कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा देने का वादा भी। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के खिलाफ नारों के बीच वह महिला मतदाताओं के सामने झोली फैलाकर वोट मांगते हैं।

सड़क के बीचों-बीच खड़े बुजुर्गों-युवाओं के साथ माइक पर तकरीर करते हैं और फिर कार से उतरकर गली की ओट में खड़ी कुछ महिलाओं से बात करते हैं। तकरीर में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी एमवाय तारिगामी की ओर इशारा कर रेशी कहते हैं कि लोग उनके गांव को कम्युनिस्ट गांव कहते हैं। इसलिए शादियों में दिक्कत आती है। वह दावा करते हैं, जमात और आतंकी समूह हिजबुल मुजाहिदीन का कोई ताल्लुक नहीं है। यह भी कहते हैं कि हथियारों से जमात को मतलब नहीं, उनके यहां सिर्फ किताबें मिलती हैं।

मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स का बॉयकॉट करते थे…अब अचानक चुनाव लड़ रहे हैं

हुर्रियत बाॅयकॉट करती थी, जमात ने नहीं किया। जमात का तो इंतखाब ही जम्हूरियत होता है। हमारा यही फैसला था कि अगर जमात से पाबंदी हटा दी जाए तो पार्टी प्रत्याशी खड़े करेगी। बदकिस्मती से ऐसा नहीं हो सका, इसलिए चंद सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी उतारे हैं।

क्या वजह है कि केंद्र जमात से पाबंदी हटा नहीं रही है, किसकी साजिश है

नहीं पता क्या वो चीज है। लेकिन, धीरे-धीरे ये फिजा कायम हो रही है। हमने अपने अमल से यह दिखा दिया है कि हमसे बेहतर इस मुल्क का कोई नागरिक नहीं हो सकता। हमसे बेहतर इस मुल्क का कोई वफादार नहीं। हमसे बेहतर भारतीय संविधान का कोई पासदार नहीं हो सकता।

आप तकरीर में डेमोक्रेसी की बात करते हैं, उस पर क्या कहेंगे

मैं पॉलिटिकल साइंस का छात्र हूं, कश्मीर यूनिवर्सिटी से। मैं जानता हूं जम्हूरियत के बगैर दुनिया में कोई चीज चलने वाली नहीं। हमारी जम्हूरियत तो पूरे आलम में मशहूर है। मैं चाहता हूं, जम्हूरी फिजा हो। लोग राय नहीं रख रहे हैं। यहां पर गुंडाराज है। चंद लोगों को अख्तियार दे दिया गया है। चंद लोगों की जेब में बजट जाता है। ये लोग सबको धमकाते हैं कि इनके साथ मत जाओ। आपको कल गिरफ्तार कर लिया जाएगा। जबकि, हम उनसे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। संविधान जानते हैं। सरकार ने सुरक्षा दी है। हम डेमोक्रेटिक प्रॉसेस में हैं।

कौन है आपका दुश्मन, ये गुंडाराज वाले

ये डेमोक्रेटिक फील्ड है। हर कोई अपनी बात, अपना मैनिफेस्टो लोगों के सामने रख रहा है। अपनी जात को शख्सियत को लोगों को सामने रख रहा है, तो चाहिए कि लोग ऐसी हरकतें न करें कि यहां का माहौल खराब हो।

मैनिफेस्टो में क्या बड़ा मसला है कश्मीर का

पंडितों की बाइज्जत घर वापसी हमारे मैनिफेस्टो में है। खेती-बागवानी भी जरूरी है। प्राथमिकता हेल्थ व शिक्षा रहेगी, पर सबसे अहम डेवलपमेंट विथ डिगनिटी (गरिमा के साथ विकास) है।

37 साल बाद जमात-हुर्रियत है चुनाव में

जमात है। हुर्रियत तो कहीं नहीं है। लोग नहीं समझ रहे, दोनों अलग हैं। जमात इंसानी दोस्ती पर यकीन रखती है। अब लोगों को जरूरत है। हम नहीं चाहते हमारा मुआशरा इतना खराब हो जाए।

कश्मीर के नेता आरोप लगा रहे हैं केंद्र आपकी मदद कर रहा…

ऐसा होता तो हम पर पाबंदी हट चुकी होती। इन राजनेताओं को लग रहा है कि उनकी रोजी छिनने वाली है। ये बड़े घरों में बसने वाले लोग हैं। अब जनता आगे आ रही तो दुष्प्रचार कर रहे हैं। अब लोग पॉलिटिकली मैच्योर हैं।

आप शिक्षित हैं, तालीम सबसे जरूरी है, फिर हालात ऐसे क्यों हुए

यही तो बात है कि जज्बाती तौर पर लोगों को शोषण किया गया है। हम चाहते हैं, अब ऐसा न हो। इन जज्बात का मुल्क की बेहतरी में इस्तेमाल हो।

आखिरी सवाल… 370 के बाद कश्मीर में क्या बदला

वो बदकिस्मती है, ऐसा नहीं होना चाहिए था। हम आवाज उठाएंगे। हालांकि अभी मैं उतना बड़ा लीडर नहीं हूं।

 

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