वर्ल्ड ग्लूकोमा डे: आंखों की फोटो खींचते ही पता चलेगा काला मोतियाबिंद, AIIMS-IIT मिलकर बना रहे AI उपकरण

वर्ल्ड ग्लूकोमा डे: आंखों की फोटो खींचते ही पता चलेगा काला मोतियाबिंद, AIIMS-IIT मिलकर बना रहे AI उपकरण

आंखों की फोटो खिंचवाते ही काला मोतिया का पता चल जाएगा। इस सुविधा के लिए एम्स आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर कृत्रिम उपकरण (एआई) तैयार कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि 40 साल से अधिक उम्र के देश में करीब 1.2 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित हैं।

इनमें से करीब 90 फीसदी लोगों को रोग के बारे में पता ही नहीं है। ऐसे में इस उपकरण की मदद से काला मोतिया की पहचान जल्द हो सकती है। यह आंख में छुपा चोर है, जो धीरे-धीरे आंखों की रोशनी को छीन लेता है। एक बार आंख की रोशनी जाने के बाद फिर वापस नहीं आती।

एम्स के आरपी सेंटर में ग्लूकोमा यूनिट के प्रभारी प्रोफेसर डॉ. तनुज दादा ने कहा कि काला मोतियाबिंद आंखों की गंभीर समस्या है। यह आंखों के अंदर दबाव बढ़ने के कारण होता है। इस दबाव को इंट्राओक्युलर प्रेशर (आईओपी) कहते हैं। आंखों के अंदर दबाव बढ़ने से ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। इसकी जल्द पकड़ के लिए एम्स आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर साफ्टवेयर को विकसित कर रहे हैं। यह छह माह में तैयार हो जाएगा। इससे आंखों की फोटो लेने पर काला मोतिया की पहचान हो जाएगी।

दिल्ली सरकार को लिखेंगे पत्र
आरपी सेंटर में कम्यूनिटी, नेत्र रोग के प्रमुख डॉ. डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि दिल्ली में 21 प्राथमिक आई केयर सेंटर है। इनमें आंखों की जांच होती है। जल्द दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर डिस्पेंसरी में सुविधा शुरू करने के लिए लिखेंगे। पूरी दिल्ली में सुविधा देने के लिए तैयार हैं।

तनाव बढ़ाता है समस्या
तनाव के कारण कॉर्टिसोल हॉर्मोन रिलीज होता है। इससे आंखों में काला मोतिया होने की आशंका बढ़ती है। डॉ. तनुज दादा न कहा कि एम्स में एक शोध किया गया। इसमें पाया गया कि तनाव के कारण समस्या बढ़ती है। इस शोध में पाया कि ध्यान लगाने से काला मोतिया की समस्या को कम किया जा सकता है। इस विधि में ध्यान लगाने के साथ धीरे-धीरे सांस ले तो पूरी शरीर का तनाव कम हो जाता है। काला मोतिया में अलोम विलोम, भ्रामरी योग करने से फायदा होता है। काला मोतिया के मरीजों को शीर्ष आसन नहीं करना चाहिए। ऐसे मरीजों को हरी सब्जी लेनी चाहिए। धूम्रपान से बचना चाहिए।

दवा की एक ही बूंद काफी
आंखों में दवा की एक बूंद ही डालना काफी है। लेकिन देखा गया कि मरीज अक्सर दो से तीन बूंद डालते हैं। यह गलत है। इससे दवा खराब होने के साथ दूसरे संक्रमण होने की आशंका रहती है।

35 के बाद करवाएं जांच
स्वस्थ व्यक्ति को भी 35 साल के बाद हर दो साल अपनी आंखों की जांच करवानी चाहिए। किसी भी साधारण केंद्र पर आंखों के प्रैशर, आंखों के दृष्टिकोण सहित चार टेस्ट कर काला मोतिया को पकड़ा जा सकता है। समय पर रोग की पहचान होने से इलाज आसन हो जाता है, लेकिन देखा गया है कि मरीज एक आंख की रोशनी जाने और दूसरी आंख की स्थिति खराब होने पर आते हैं। ऐसे में खोई हुई रोशनी को वापस ला पाना काफी कठिन हो जाता है।

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