MP News: नर्सिंग काउंसिल दफ्तर से CCTV फुटेज गायब, हाईकोर्ट ने भोपाल पुलिस कमिश्नर और साइबर सेल को जांच सौंपी

मध्यप्रदेश में चल रहे नर्सिंग घोटाले में सीबीआई की जांच के बाद कई गंभीर मुद्दे सामने आए हैं। जहां 500 से अधिक नर्सिंग कॉलेजों पर ताले लग चुके हैं, वहीं नर्सिंग काउंसिल में भी भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के मामले सामने आए हैं। हाल ही में, एमपीएनआरसी (मध्यप्रदेश नर्सिंग रजिस्ट्रेशन काउंसिल) के रजिस्ट्रार ने हाईकोर्ट में बताया कि काउंसलिंग कार्यालय के सीसीटीवी फुटेज का डेटा उपलब्ध नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने गंभीर आपत्ति जताई और इसे लुका-छुपी का खेल करार दिया। कोर्ट ने पुलिस आयुक्त और साइबर सेल प्रभारी को निर्देश दिया कि सीसीटीवी फुटेज को पुनः प्राप्त करने के लिए सभी संभावित प्रयास किए जाएं। इसके अलावा, हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को निर्धारित की है।
यह मामला लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल द्वारा दायर याचिका से जुड़ा हुआ है, जिसमें मध्यप्रदेश में फर्जी नर्सिंग कॉलेजों के संचालन को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि काउंसलिंग के रजिस्ट्रार और तत्कालीन निदेशक ने महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए नर्सिंग कॉलेजों के मान्यता मामलों में अनियमितताएं की हैं। जांच में यह पाया गया कि एक नर्सिंग कॉलेज की निरीक्षण रिपोर्ट पर आधारित मान्यता दी गई थी, जिसे बाद में आयोग्य पाया गया और उसकी मान्यता निरस्त कर दी गई। इसी प्रकार, दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया गया, लेकिन अब तक उन्हें पद से नहीं हटाया गया है, जिससे हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की।
गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान रजिस्ट्रार ने सीसीटीवी फुटेज के संबंध में जानकारी दी, जिसे लेकर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि 13 से 19 दिसंबर के बीच के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखा जाए, और रजिस्ट्रार के फोन की लोकेशन की जानकारी भी प्राप्त की जाए, ताकि उनकी कार्यालय में उपस्थिति का पता चल सके। साथ ही, कोर्ट ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज की भी जांच के आदेश दिए, ताकि यह पता चल सके कि क्या-क्या महत्वपूर्ण दस्तावेज चोरी हुए हैं। इसके अलावा, सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर, साल 2002-23 में जीएनएम पाठ्यक्रम में बिना अनुमति के दाखिला लेने वाले छात्रों के नामांकन का विवरण भी पेश करने के आदेश दिए गए हैं।
इस पूरे मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने पैरवी की और उन्होंने आरोपों को प्रमाणित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज और साक्ष्य प्रस्तुत किए।