निर्दलीय उम्मीदवार ने तिरहुत एमएलसी उपचुनाव में दिया बड़ा उलटफेर, जदयू-राजद को मिली हार

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तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव की मतगणना में एक दिलचस्प मोड़ आया है। पहले राउंड से ही निर्दलीय प्रत्याशी वंशीधर बृजवासी ने बढ़त बना ली और वह अब तक 23,003 वोटों के साथ पहले स्थान पर हैं। उनके बाद जनसुराज के डॉ. विनायक गौतम 12,467 वोटों के साथ दूसरे, राजद के गोपी किशन 11,600 वोटों के साथ तीसरे, और जदयू के अभिषेक झा 10,316 वोटों के साथ चौथे स्थान पर चल रहे हैं। इस दौरान यह माना जा रहा था कि महागठबंधन के प्रत्याशी, विशेषकर जदयू और जनसुराज के बीच कांटे की टक्कर होगी, लेकिन वंशीधर बृजवासी ने पहले राउंड से ही पूरे चुनावी परिदृश्य को बदल दिया।मतगणना के पहले राउंड में ही राजद और जदयू के प्रत्याशी पिछड़ गए थे। इस दौरान जदयू के अभिषेक झा को 1,100 वोट, राजद के गोपी किशन को 1,200 वोट और जनसुराज के डॉ. विनायक गौतम को 1,600 वोट मिले थे। इसके बाद वंशीधर बृजवासी ने हर राउंड में बढ़त बनाई और अन्य सभी प्रत्यार्तियों से आगे निकल गए। उनकी बढ़त को देखकर यह साफ हो गया कि इस उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी ने महागठबंधन के उम्मीदवारों को कड़ी चुनौती दी है।

नौ राउंड की गिनती के बाद वंशीधर बृजवासी को 23,003 वोट मिले, जबकि डॉ. विनायक गौतम को 12,467, गोपी किशन को 11,600 और अभिषेक झा को 10,316 वोट मिले। इसके अलावा अन्य उम्मीदवारों को अपेक्षाकृत कम वोट मिले, जैसे राकेश रौशन को 3,920, संजय कुमार को 4,932 और अरविंद कुमार विभात को 299 वोट मिले।निर्दलीय प्रत्याशी वंशीधर बृजवासी शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं और उन्होंने लगातार शिक्षा सुधार के लिए आवाज उठाई है। वे नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए शिक्षा विभाग में अराजकता और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते रहे हैं। वंशीधर बृजवासी ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत उस समय की थी जब उन्होंने तत्कालीन अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ खुलकर विरोध किया था, जिसकी वजह से उन्हें अपनी सरकारी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद उन्होंने राजनीति में सक्रियता बढ़ाई और शिक्षा के मुद्दों पर अपनी राजनीति केंद्रित की।उनकी इस सक्रियता और संघर्ष ने उन्हें क्षेत्र में पहचान दिलाई, और अब उपचुनाव में उनकी उम्मीदवारी ने सियासी समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है। वंशीधर बृजवासी की बढ़त से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपने चुनावी मैदान में शिक्षा, भ्रष्टाचार और सरकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष को प्रमुख मुद्दा बनाया, जिससे उनके समर्थकों ने उन्हें भारी समर्थन दिया।

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