MP News: इज्तिमा का ‘प्रयोग’ महाकुंभ में होगा, भोपाल मॉडल से कचरा निष्पादन का नया तरीका।

महाकुंभ और स्वच्छता: भोपाल से निकला एक अभिनव कांसेप्ट
भारत में आयोजित होने वाले बड़े धार्मिक आयोजनों में स्वच्छता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होती है, विशेषकर जब लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इसी चुनौती को हल करने के लिए भोपाल से एक अभिनव स्वच्छता मॉडल सामने आया है, जिसे पिछले कई वर्षों से सफलतापूर्वक लागू किया जा रहा है। इस मॉडल को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी स्थान मिल चुका है और अब इसे प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ में लागू करने की तैयारी की जा रही है।
महाकुंभ में स्वच्छता के प्रयास:
जनवरी 2025 में शुरू होने वाला महाकुंभ फरवरी के अंत तक जारी रहेगा, जिसमें अनुमानित 40 करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है। इस विशाल आयोजन में स्वच्छता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी, खासकर कचरा और पानी के प्रबंधन को लेकर। इस चुनौती से निपटने के लिए, महाकुंभ प्रबंधन समिति ने कचरा और पानी के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण के लिए रोडमैप तैयार किया है।
इसके अलावा, एक नया पहल “एक झोला, एक थाली” लाया जा रहा है, जिसमें श्रद्धालु प्लास्टिक बैग और डिस्पोजल क्रोकरी का उपयोग नहीं करेंगे। यह कदम महाकुंभ में उत्सर्जित कचरे को काफी हद तक कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।
भोपाल का योगदान:
भोपाल के पर्यावरणविद सैयद इम्तियाज अली ने इस स्वच्छता मॉडल को तैयार किया और इसे पिछले कई सालों से सफलतापूर्वक लागू किया है। उनका कहना है कि वे महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों में अपनी विशेषज्ञता और तकनीकी मार्गदर्शन के जरिए स्वच्छता प्रयासों को सफल बनाएंगे। इम्तियाज ने कहा कि उनका उद्देश्य भारत और दुनिया के अन्य बड़े धार्मिक, सामाजिक इवेंट्स में स्वच्छता के प्रयासों को आगे बढ़ाना है।
इज्तिमा में सफल प्रयोग:
भोपाल का यह मॉडल पहले भी विभिन्न आयोजनों में सफलतापूर्वक लागू हो चुका है, जैसे कि आलमी तबलीगी इज्तिमा, जिसमें हर साल लाखों लोग जुटते हैं। यहां खाने के वेस्टेज को खाद में बदला गया और पानी की बॉटल्स को क्रश कर दिया गया। इससे स्वच्छता बनाए रखने में काफी मदद मिली और कचरे को प्रभावी तरीके से निस्तारित किया गया।
आगे की योजना:
भोपाल का यह स्वच्छता मॉडल महाकुंभ के बाद अन्य धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में भी लागू किया जाएगा। इस प्रयास से न केवल कचरा प्रबंधन में सुधार होगा, बल्कि यह बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए एक आदर्श बन सकता है।
स्वच्छता अब सिर्फ एक सरकारी अभियान नहीं, बल्कि एक धार्मिक और सामाजिक दायित्व बन चुका है। भोपाल के इस स्वच्छता मॉडल की सफलता से यह साबित होता है कि यदि ठान लिया जाए, तो बड़े से बड़े आयोजनों में भी स्वच्छता बनाए रखना संभव है।